चिदात्मा है गीत
वाद-विवाद से निरपेक्ष ।
खिंचें परकोटे
तनें संगीन
अब क्या
अहेरी के कुढ़े तीरों की उसे परवाह ।
खुले मन से
चल रहा बेख़ौफ़
सरणी यक़ीनन विश्वास की
ज्योतिर्मयी है
वाह !
लोकमन में, गीत की रच-बस सनातन है
कुण्ठ या निष्कुण्ठ भाव-विचार से निरपेक्ष ।
चिदात्मा है गीत
वाद-विवाद से निरपेक्ष ।
प्रकृति-संस्कृति और जनसापेक्ष
भास्वर ज़िन्दगी की धड़कनों का
गीत अक्षत राग ।
राग में जो आग है सम्वेद्य
अनबुझ
बन गई है वह चिंहुक कर
चेतना का भाग ।
है दुरन्त-अछोर
लय की साधना का पथ
कलावन्ती पहुँच और प्रमाद से निरपेक्ष ।
चिदात्मा है गीत
वाद-विवाद से निरपेक्ष ।