Last modified on 1 अगस्त 2008, at 08:40

चिन्तन / महेन्द्र भटनागर

मृत्यु ?
एक प्रश्न-चिन्ह !

भेद जानना
दुरूह ही नहीं;
मनुष्य के लिए
अ-ज्ञात
सब।
देह पंच-तत्त्व में विलीन
सब बिखर-बिखर !
समाप्त।

प्राण लौटना नहीं;
न सम्भवी
पुनः सचेत कर सकें,
रहस्य ज्ञात कर सकें
स्वयं जब नहीं।

मरण - प्रहेलिका
अजब प्रहेलिका !
अबूझ आज तक
गज़ब प्रहेलिका !

प्रयत्न व्यर्थ
मृत्यु-अर्थ व्यक्त हो सके;
जटिल कठिन
विचारणा।