Last modified on 7 सितम्बर 2018, at 00:41

चिन्ता / ककबा करैए प्रेम / निशाकर

बाबाकें गंगा दूषित होयबाक चिन्ता छनि
मायकें नुआ फटबाक
भैयाकें रोजगार नहि जुटबाक
बहिनकें उबटन नहि लगबाक।

रंडीकंे गाहक नहि अयबाक चिन्ता छै
विधवाकें पति मुइलाक
किसानकें बरखा नहि होयबाक
मछबारके जाल फटबाक
नेनाकें खेलओना टुटबाक
महिसबारकें महीस गाभिन नहि होयबाक।

कवि तकैत अछि कविता
ओकरा चिन्ता छै
कविताकें बचयबाक।