Last modified on 27 नवम्बर 2007, at 00:59

चिन्ता / वरवर राव

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: वरवर राव  » संग्रह: साहस गाथा
»  चिन्ता


मैंने बम नहीं बाँटा था

ना ही विचार

तुमने ही रौंदा था

चींटियों के बिल को

नाल जड़े जूतों से ।


रौंदी गई धरती से

तब फूटी थी प्रतिहिंसा की धारा


मधुमक्खियों के छत्तों पर

तुमने मारी थी लाठी

अब अपना पीछा करती मधुमक्खियों की गूँज से

काँप रहा है तुम्हारा दिल !


आँखों के आगे अंधेरा है

उग आए हैं तुम्हारे चेहरे पर भय के चकत्ते ।


जनता के दिलों में बजते हुए

विजय नगाड़ों को

तुमने समझा था मात्र एक ललकार और

तान दीं उस तरफ़ अपनी बन्दूकें...

अब दसों दिशाओं से आ रही है

क्रान्ति की पुकार ।