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चिरायु / दीप्ति गुप्ता

मृत्यु तुम शतायु हो, चिरायु हो!
तभी तो इन शब्दों के समरूप हो, समध्वनि हो,
शतायु, चिरायु, मृत्यु
तुम अमर हो, अजर हो,
तुम अन्त हो, अनन्त हो,
तुम्हारे आगे कुछ नहीं,
सब कुछ तुम में समा जाता है,
सारी दुनिया, सारी सृष्टि
तुम पर आकर ठहर जाती है,
तुम में विलीन हो जाती है,
तुम अथाह सागर हो,
तुम निस्सीम आकाश हो,
इस स्थूल जगत को अपने में समेटे हो,
फिर भी कितनी सूक्ष्म हो
संसार समूचा तुमसे आता, तुम में जाता,
महिमा तुम्हारी हर कोई गाता,
रहस्यमयी सुन्दर माया हो
आगामी जीवन की छाया हो!