Last modified on 21 जुलाई 2008, at 21:57

चिर-वंचित / महेन्द्र भटनागर

जीवन - भर
रहा अकेला,
अनदेखा _
सतत उपेक्षित
घोर तिरस्कृत!
जीवन - भर
अपने बलबूते
झंझावातों का रेला
झेला !
जीवन - भर
जस-का-तस
ठहरा रहा झमेला !
जीवन - भर
असह्य दुख - दर्द सहा,
नहीं किसी से
भूल
शब्द एक कहा!
अभिशापों तापों
दहा - दहा!
रिसते घावों को
सहलाने वाला
कोई नहीं मिला _
पल - भर
नहीं थमी
सर -सर
वृष्टि - शिला!
एकाकी
फाँकी धूल
अभावों में -
घर में :
नगरों-गाँवों में!
यहाँ - वहाँ
जानें कहाँ - कहाँ!