वेणुवन की छाँह में बैठा अकेला
मैं कभी बंसी, कभी सीटी बजाता हूँ।
खूब खुश हूँ, आदमी कोई नहीं आता।
चाँद केवल रात में आ झाँकता है।
सूर्य, पर, दिन में चला जाता बिना देखे।
कौन दे उसको खबर इस कुंज में कोई छिपा है?
वेणुवन की छाँह में बैठा अकेला
मैं कभी बंसी, कभी सीटी बजाता हूँ।
खूब खुश हूँ, आदमी कोई नहीं आता।
चाँद केवल रात में आ झाँकता है।
सूर्य, पर, दिन में चला जाता बिना देखे।
कौन दे उसको खबर इस कुंज में कोई छिपा है?