चुनी हुई मौतों के साथ
यह बार-बार दोहराता हूँ कि
मैं किसी क़ब्रिस्तान से गुज़र रहा हँ
यहाँ लोग जिन्हें देखने आते हैं
वे मुझे भी देखते हैं
लेकिन यह शांति भंग वाली स्थिति नहीं है
वे सिर्फ़ स्मृति और एहसास में प्रवेश करते हैं
मैं एकटक हूँ
कई बार मैं अपनी ज़ेबों में हाथ डालता हूँ
उनमें कुछ नहीं सिवाय फूल और चंद पत्तियों के
मैं उन्हें बाहर नहीं निकालता
झिझकता हूँ
भीतर सायरन बजता है
प्रेम और ग़ुस्से के बीच
अजीब संतुलन है
जबकि यह ज़रूरी है
हम अपनी चुनी हुई मौतों के साथ यहाँ हों
जो फूल लेकर आए
वे लौट जाते हैं
उन्हें फिर से प्रवेश करना है दुनिया में
जहाँ वे अपनी चाहत और
अनिच्छा के बीच
उद्यम करेंगे जीने का
कुछ लौटने और नहीं लौटने के बीच हैं
वे जो कहीं नहीं जाएंगे
यहीं बारिश में भींगे होंगे
क़ब्र की गीली मिट्टी के साथ
जीवन की परतों को उघाड़ने के बाद
सच वह नहीं जो हमें सौंपा गया
रास्ते भर भटकने के बाद
धूल थी हमारे नंगे बदन पर
हम अब भी वहीं धूल झाड़ रहे थे