तुम नवीन देश के गुमान हो,
मान हो, स्वतंत्रता-प्रमाण हो;
सत्य की कमान पर तुले हुए
त्याग के अमोघ अग्निबाण हो।
तुम अमर समर-सुधी सुधीर हो,
वीर हो, जगज्जयी प्रवीर हो;
होलिका-दहन-युगान्त-पर्व में
विश्व के गुलाल हो, अबीर हो।
अग्नि बन समुद्र में जले तुम्हीं;
घोषणा किये विदिग् बले तुम्हीं;
गर्व से उठे, हिमाद्रि बन गए;
लोक के लिए पिघल चले तुम्हीं।
धर्म की धरा-धुरी धरे हुए,
कर्म के अपार को तरे हुए;
सत्य की हरेक जाँच-आँच में
तुम तपे सुवर्ण-से खरे हुए।
आज फिर पड़ी हुई कमान है,
दे रहा चुनौतियाँ जहाँ है,
भूमि का हिया करे मुदित कोई
आज फिर तुम्हारा इम्तिहान है!