आज विश्व की महाशक्ति को मुझे चुनौती दे देने दो !
मानव-पथ पर,
युद्ध निरन्तर,
चारों ओर मचा कोलाहल
जाता जिससे आकाश दहल
मिटा सबेरा,
घिरा अँधेरा,
मुझको अपने उर-साहस की, आज परीक्षा ले लेने दो !
लहरें आयीं,
विप्लव लायीं,
तूफ़ान उठे सागर-तल में,
बिजली कड़की बादल-दल में,
पतवार नष्ट,
संबल विनष्ट,
अंधकार-मय भीषण क्षण में जीवन-नौका को खेने दो !
1945