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चुन्नू का खेल / नंद चतुर्वेदी


चुन्नू अकेला खेलता है
दूसरी तरफ कोई नहीं होता
प्रतिपक्ष में
फिर दूसरी तरफ आकर खड़ा हो जाता है
दौड़ने लगता है
गेंद भी नहीं होती
बल्ला घुमाता है तब भी
एक नजर न आने वाली
गेंद की तरफ

ऐसे भी कोई खेल चलेगा, चुन्नू !
पहले खड़ा करो उधर कोई
कोई तो भी प्रतिद्वन्द्वी
फिर गेंद-बल्ला
और भागो

इस तरह गिर पड़ता है चुन्नू
गेंद का पता नहीं होता
तो भी
फिर खड़ा हो जाता है
देखा भले हो किसी ने
न भी देखा हो
जब बड़े हो जाओगे चुन्नू !
तब अचरज करने के लिए भी
समय नहीं होगा
तुम ऐसे भागे, गिरे
हवा में उड़ती, उछलती गेंद के लिए
शायद उस समय का
निशान बच जाए कोई
खरोंच का
या पैर मुड़ जाने का दर्द
जब बादल आएँ
या शांत हो चुका हो सब
बच्चे विकिट समेट कर चले जाएँ
और खेल के मैदान में
कुछ भी नजर न आए।