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चुन रहा हूँ, सुबह को अँगनाई में बैठा हुआ / निश्तर ख़ानक़ाही

चुन रहा हूँ, सुबह को अँगनाई में बैठा हुआ
दाना-दाना रात के खलिहान का बिखरा हुआ

आ, कि अब इस खोखलेपन पर हँसें बेसाख़्ता
तेरे आँसू तयशुदा थे, मेरा ग़म सोचा हुआ

उससे क्या कहता कि मेरी रूह छलनी हो गई
दोस्त था, इज़हारे-हमदर्दी से आसूदा हुआ

हादिसा ये घर के जलने से भी था संगीन-तर
उसके होठों पर मिला इक क़हक़हा चिपका हुआ

अब की बरखा में ये टूटी छतरियाँ काफ़ी नहीं
आँधियाँ उठने को हैं, बादल बहुत गहरा हुआ

1- इज़हारे-हमदर्दी--साहनुभूति की अभिव्यक्ति

2- आसूदा--संतुष्ट प्रसन्न