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चुपके से पेड़ / कुमार रवींद्र

कभी-कभी
चुपके से हँसते हैं पेड़
 
धूप गुदगुदाती है
जब उनकी बाँह
फैलाते वे अपनी
तब ठंडी छाँव
 
खुश होते
दुबली पगडंडी को छेड़
 
जंगल में रात-रात
तारों के पास
बैठे वे बुनते हैं
सुख के अहसास
 
सहलाते
सपनों से ओस-सिंची मेड़