नदी की तरह
बह जाता हूँ
फिर सूख जाता हूँ
रेत की तरह रहता
हवा की तरह कभी शान्त
आन्दोलित अन्दर ही अन्दर
दिखता नहीं
हजारों धूल-कणों के सैलाब की तरह
विचलित-अविचलित
चुप्पा ज़िन्दगी में
धूप के खुलते भेद की तरह
लपट लेता
दिखता न दिखता-सा !
नदी की तरह
बह जाता हूँ
फिर सूख जाता हूँ
रेत की तरह रहता
हवा की तरह कभी शान्त
आन्दोलित अन्दर ही अन्दर
दिखता नहीं
हजारों धूल-कणों के सैलाब की तरह
विचलित-अविचलित
चुप्पा ज़िन्दगी में
धूप के खुलते भेद की तरह
लपट लेता
दिखता न दिखता-सा !