गन्ने के खेतों की मीठी गाँठें
चुप हैं।
वह नहीं जानती
कौन-सा कॉर्पोरेट घराना
खींच लेगा उसका रस।
मैं चाहकर भी अपने ही देश के गन्नों से
बतिया नहीं सकता हूँ।
मैं जानता हूँ
कब वह खोल दे अपना भय
कब छिपा ले अपना अनकहा दर्द!
गन्ने के खेतों की मीठी गाँठें
चुप हैं।
वह नहीं जानती
कौन-सा कॉर्पोरेट घराना
खींच लेगा उसका रस।
मैं चाहकर भी अपने ही देश के गन्नों से
बतिया नहीं सकता हूँ।
मैं जानता हूँ
कब वह खोल दे अपना भय
कब छिपा ले अपना अनकहा दर्द!