आमतौर पर चुप रहते हैं ।
मामूली झोंका बयार का
दुखती आँख सरीखे दिल में
गड़ जाता था कभी सुई-सा ।
अनवस्थित स्वभाव को फूँका
डंक विवशताओं के तोड़े
है हलका मन आज रुई-सा ।
आत्मवेदना की नज़रों से
जो निरखा है, वही कहा है
लोग हमें पागल कहते हैं ।
आमतौर पर चुप रहते हैं ।
दृष्टान्तों की ताक़त के बल
देखा-देखी जिया न जाता
प्रहसन की हिलगंट कटेगी ।
स्वयंप्रभा मति की जगार में
इन्हीं विसंगत हालातों से
चिनगी कोई करवट लेगी ।
घुले जागतिक सम्वेदन में
बुद्धि-भावना-तर्क हमारे
व्यंग्य असंगति के सहते हैं ।
आमतौर पर चुप रहते हैं ।