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चूनर तारों वाली / संजीव 'शशि'

बिटिया ने बोला था पापा,
लाना चूनर तारों वाली।
नहीं काम मिल पाया फिर से,
कैसे घर लौटूँ मैं खाली॥

ऊँची-ऊँची ये मीनारें।
झिलमिल करतीं ये बाजारें।
महँगे कपड़े, महँगे गहने।
सरपट दौड़ रही हैं कारें।
जिसकी जेब भरी नोटों से,
उसकी तो हर रात दिवाली।

कितने सारे स्वप्न ओढ़कर।
शहर आ गया गाँव छोड़कर।
किसे पता था निर्मम सपने।
रख देंगे इस तरह तोड़कर।
अब तो लगने लगी पूर्णिमा,
जैसे मावस काली-काली।

बिटिया बोली ओ पापा सुन
आएँगे अपने अच्छे दिन।
बस तुम मुझको गले लगालो,
रह लूँगी मैं चूनर के बिन।
तुम्हें देखकर लगता पापा,
पल में पूरी दुनिया पाली।