नहीं प्रकट हुई कुरूप क्रूरता,
तुम्हें कठोर सत्य आज घूरता,
यथार्थ को सतर्क हो ग्रहण करो,
प्रवाह में न स्वप्न के विसुध बहो।
कि तुम हिए सहिष्णुता लिए रहे,
कि तुम दुराव दैन्य का किए रहे,
तजो पलायनी प्रवृत्ति, कादरो,
बुरी प्रवंचना, उसे ’विदा’ कहो।
विरुद्ध शक्तियां समक्ष आ खड़ीं,
हरेक पर जवाबदेहियां बड़ी,
यही, यही अभीत कर्म की घड़ी,
बने तमाशबीन मत खड़े रहो।