जपै जय उचारो, धरनि ध्यान धारो।
तजो मन विकारो, भजो प्रान प्यारो॥1॥
महाराज राजा, भगत भाव काजा।
जवै गर्भ वासा, किया मानुषासा॥2॥
बनो माथ हाथा, चरन पाठ साथा।
लगेपेट ग्रीवा, अहुठ हाथ सीवा॥3॥
रक्त माँस हड्डी, त्वचा रोम गड्डी।
नयन जीभ नासा, श्रवन इन्द्रि आसा॥4॥
ओझरि आँत भजा, फफेसा करेजा।
कियो दश हुआरा, पवन प्रन धारा॥5॥
तहाँ प्रान प्यारा, दियो आनि चारा॥
मलो मूत्र कीरा, अगिन आँचपीरा॥6॥
वँधे अष्ट गाता, अधो मुख झुलाता।
भवोकष्ट भारी, तो कहता पुकारी॥7॥
नरकते निकारो। मैं वन्दा तिहारो॥
करो भक्ति ऐसी, कहाँ आजु जैसी॥8॥
चरन चित्त लाआँ, नकाहू दुखाआँ॥
दयाकी दयाला, वहाँते निकाला॥9॥
कछूक दिन अचेते, गओ दूध लेते॥
वहुरि अन्न पानी, वचन बोलि जानी॥10॥
कहो काहु माता, पिता बहिन भ्राता।
लगो काहु चाचा, चचानी सगाई॥11॥
ममेरा फुफेरा खलेरा घनेरा।
अरोसी परोसी चिन्हो चेरि चेरा॥12॥
कलो कर्म जानो यगानो वै गानो।
वहाँ गोष्टि कीन्ही सो भर्मै भुलानो॥13॥
गली गैल डोले व बोले उमंगा।
गुलेला फुलेला दसन लाल रंगा॥14॥
गाओ बाल वस्था भवो देह कामा॥
बहू ब्याहि लाये, बजाये दमामा॥15॥
बहोरे बछेडे बराती बनाये।
बड़ी डीमसेती बहू ब्याहि लाये॥16॥
तो दुनिया के परपंच देखन को आये।
अपाने अपन पाँव बेरी भराये॥17॥
खनी खंध केँ कोट कीनों कंगूरा।
महल के टहल में घनेरा मजूरा॥18॥
मया का पसारा किया फौज भारी।
बढ़ी साहेबी चापि कीन्हो सवारी॥19॥
कबहिँ जाय पंखी से पंखी धरावै।
कबहिँ जंगली जीव कुत्तोँ तोरावै॥20॥
कबहिँ जाल जंजाल मच्छी बझावै।
कबहि वन घेरावै अगिन से जरावै॥21॥
सो तोपै ढलावै गढी को ढहावै।
कबहुँ वन्द वेशी मवेशी ले आवै॥22॥
बडे चाक चौखूँट ईंट पकावै।
जड़ै पाथरेँ नक्शगीरी करावै॥23॥
धरा धौरहर धौल ऊँचो उठावै।
तहाँ जोरि आछे बिछोना बिछौवै॥24॥
वहाँ फूल फैले लगे तूल तकिया।
दरीची बरीची उठी झाँक झकिया॥25॥
सिपाही घनेरे खड़े शीश नावेँ।
केते भिच्छु का झूठ शोभा सुनावै॥26॥
हरिन भाल मेढा वहस्ती लड़ावेँ।
नई नारि नागरि नटिन सो नचावैँ॥27॥
धरीको बजावै समुझि जी न आवै।
हरै धन विरानो निशानो लगावै॥28॥
कतेको भले जीव शूली चढ़ावै।
महामस्त होइ मुंडमाला बँधावै॥29॥
जो हरि की भगति जीव-दया दिढावै।
करै ताकि निन्दा नगीचो न आवै॥30॥
विलोका पसारा मनहि मन विचारा।
जगत जेर सारा जिवन धन हमारा॥31॥
करते कला देखि ऐसा विचारा।
लगे दूत गैबी पलंगैं पछारा॥32॥
कतेको वहद बैठि करु ओबधाई।
कतेको करै आप आसन जमाई॥33॥
कतेकाँ से तावीज जंतर लिखावेँ।
सग न साधि केते झरावेँ फुकावेँ॥34॥
कहै आजु ऐसो मिलै जो जियावै।
बराबर कया-भार सोना सौ पावै॥35॥
जबहिँ युक्ति जगदीश ऐसी बनाई।
तबहुँ राम के नाम निश्चय न आई॥36॥
तकावे तबेला झुमेलाके हाथी।
परो बूझि यहि दख संगी न साथी॥37॥
खजाना रुपैया जहाँ को जहाँ ही।
रही सुन्दरी जो जहाँ की तहाँ ही॥38॥
कमाई समुझि अन्त आई रोआई।
गया जन्म ऐसे भगति हिय न आई॥39॥
चलावन चहे जाहि जगदीश रहया।
कहो ताहि को जग कवन है रखइया॥40॥
दइव को न जाना दियासाँ बुझाना।
जगीरी तगीरी व थाना निशाना॥41॥
पेआना 2 पुकारत लोगा।
रोअते कबीला परे मुंड सोगा॥42॥
जना चारि आये, वहाँ ते उठाये।
आगिनसाँ जराये नदीमेँ बहाये॥43॥
पेन्हाये कफन, खोदि खादेँ गडाये।
जो दीवान साहेब सलामी कहाये॥44॥
प्रबोधो न वाँचो बहुत नाच नाचो।
कला खोलि खाली चला इन्द्र जाली॥45॥
जहाँ धर्मराया, चितर गुप्त छाया।
वहाँ पत्र देखा, सुकृतको न लेखा॥46॥
नहीँ नाम पाया, नहीँ जीव-दाया।
भगति कीन मेवा, नहीँ साधु सेवा॥47॥
जुआजन्म हरि, बेकूफी बेचारे।
भुलाने अनारी, परो भारी॥48॥
गये यहि प्रकारा, कतेको मुआरा।
अवर जो बिचारा करैको शुमारा॥49॥
गये कंस कौरव व शिशुपाल रावन।
गये छप्पनौ कोटि, यादव कहावन॥50॥
गये चन्द वो चक्रवर्ती कहाये।
गये मण्डलीको सँदेशो न पाये॥51॥
गये शाक वंदी शका बाँधि केते।
व माटी मिले वीर वलवान जेते॥52॥
गये खान सुलतान जो छत्रधारी।
गये मीर उम्रा करोराँ हजारी॥53॥
जो बेगम विचारी गये मारि डारि।
हुती प्रान प्यारी सोद नारी पवारी॥54॥
गये राख रानी व शानी गुमानी।
तिनकाँ की कहो धोँ कहाँ है निशानी॥55॥
गये लाखपरि जो धुजा वाँधि कोटी।
दिनो डारि पासा लिनाँे मारि गोटी॥56॥
हिये चेत चेतो चेतावन चेताऊँ।
सँभारो 2 अगाऊँ अगाऊँ॥57॥
भरे दाग पीछे यतन कर धोवाओ।
अगाऊँ नहीँ दाग के बाग जाओ॥58॥
कृपारामते मानुषी देह पारी।
चलो राह नेकी बदी को विसारो॥60॥
भगति भाव चूके सोइ भवन झूके।
जिन्हे भक्ति भेंटी जरामर्न मेटी॥61॥
वही जन सुभागे उलटि पंथ लागे
हिये दाग दागे पिये प्रेम पागे॥62॥
भगत धुर्व राया, अचल राज पाया।
भले आपु जागे अवर को जगाया॥63॥
जो प्रहलाद अह्लादसे भक्तिधारी।
थप्यो इन्द्रकोसाँ सक्यो कौन टारी॥64॥
मोरध्वज तमो-ध्वज, जनक अम्वरीषा।
युधिष्ठिर, भरत, गोपीचन्दर, परीखा॥65॥
तो देखो विभीषण भगति भाव साजे।
अजहुँ लोक निकलंक निःशंक गाजे॥66॥
भगत भर्थरी और जानी है पीपा।
जिन्हाँका अमर नाम है द्वीप द्वीपा॥67॥
कमायो है नामा सुदामा भलाई।
कबीरा गोरखनाथ औ मीरवाई॥68॥
शुकदेव जयदेव शोभा सोहाई।
रवीदास सेना धना धरिताई॥69॥
अमरनाम अहमद तजी बादशाही।
दुनीमँ प्रगट नाम जाको सराही॥70॥
फकीरी करी सोइ साँचो अकीदा।
मिसाले रहीमा, वजीदा, फरीदा॥71॥
निके नानका चत्र-भुज चित लाया।
भजी लोक-लज्जा तजी मोह माया॥72॥
विराजो जहाँ लो भगत लोकमाँही।
कहाँ लोँ कहाँ सन्तको अन्त नाहीँ॥73॥
सकल संत-दया चेतावनि चेताया।
धरनिदास आया शरन राम-राया॥74॥