जननी सुत बंधु सुता सुत संपति मीत महाहित संतति जोई।
आवत संग न संग सिधावत, फांस मया परि नाहक खोई॥
केवल नाम निरंजन को जपु, चारि पदारथ जाहिते होई।
बूझि विचारि कहै धरनी, जग कोइ न कौहुक संग सगोई॥26॥
जननी सुत बंधु सुता सुत संपति मीत महाहित संतति जोई।
आवत संग न संग सिधावत, फांस मया परि नाहक खोई॥
केवल नाम निरंजन को जपु, चारि पदारथ जाहिते होई।
बूझि विचारि कहै धरनी, जग कोइ न कौहुक संग सगोई॥26॥