कौल करी जो आय सो तो जीते विसराय, विषयामाँ लपटाय और ही दलत हो।
रहेगो न ऐसो देह आगहीं सुधारो गेह, दिन चारि को सनेह खेह को जरत हो॥
धरनि कहत चिन्तामनिते चिन्हार करो, बार-बार पारवार काहके परत हो।
बावरो परत बेढ़ सुझत न टेढ़ मेढ़, डेढ़ दिन लागि काहे टेढ़ हो चलल हो॥9॥