Last modified on 17 अक्टूबर 2013, at 07:10

चेत !/ कन्हैया लाल सेठिया

रूंखां पर
चिड़कल्यां घणी‘र
पानड़ा थोड़ा
गांव गळ्यां में
मावै कोनी मऊ
खेत खुद भूखां मरै
गिट ज्यावै बायोड़ा बीज
नदी नाळा आप तिरसाया
पी ज्यावै
बरसती कळायण
भौम करळावै
समदर ऊफणै
आभो धूजै
स्यात् सिव करै है
सिस्टी रै
परळै री त्यारयां
बार बार पटकै फण
आपाधापी रा सरप
धडूकै घमंड रो नांदियो
उछाळै सींगां स्यूं धूळ
पण हाल कोनी छोड़ी
मायड़ गोरजा आस
ओज्यूं कोनी झलाया
डमरू‘र तिरसूळ
टळ्यां जावै है हूण
ओ भाई मिनख
अबै ई चेत
तांडव री मुदरा बणै
ईं स्यूं पैली ही
पकड़ लै सत रो गेलो
सुण अंतस में बैठे
सुन्दर रो हेलो !