Last modified on 21 मई 2011, at 04:30

चेहरा / नवनीत पाण्डे

मैंने देखा है अंधेरा
जानता हूं अंधेरे को
इसीलिए
भागता हूं अंधेरे से
नहीं चाहता अंधेरा
अंधेरे में खो जाता है चेहरा
चेहरा
मेरा, तुम्हारा, किसी का भी
इसी चेहरे के लिए तो आदमी
सोता है जागता है
रात-दिन भागता है
जीता है, मरता है
धुरी पर चलता है
अंधेरे का भूत
जब चेहरे पर उतरता है
अंधियाकर आदमी
आदमी से डरता है