एक अजायबघर में
कवि का चेहरा टँगा हुआ है
भावशून्य निर्जीव निरीह
इसे तोड़ दो
या फिर कहीं छिपा दो
सोचो
अगर कहीं यह
ऐसा होता
तो अब तक ज़िन्दों में होता
एक अजायबघर में
कवि का चेहरा टँगा हुआ है
भावशून्य निर्जीव निरीह
इसे तोड़ दो
या फिर कहीं छिपा दो
सोचो
अगर कहीं यह
ऐसा होता
तो अब तक ज़िन्दों में होता