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चेहरा खोजता चेहरा / मिथिलेश श्रीवास्तव

वह चाहता है एक हँसता हुआ चेहरा
थका चेहरा देखकर वह थक जाता है
एक हँसी अपने चेहरे पर उसके लिए
मैं लाना चाहता हूँ
गालों पर उभर आती हैं हड्डियाँ
हँसना अब रंगमंचीय कौशल है
काफ़ी अभ्यास के बाद आता है
मेरे पिता हँसते थे कभी-कभार
वे लेकिन दिखते वैसे ही थे
जैसा दिखता हूँ मैं तस्वीर में ।

वह आजिज़ हो आता है
वह बनाता है एक ऐसा स्पेस
जिसमें हँसते हुए आदमी की जगह पुते होते हैं
लाल पीले और हरे रंग ।
बोलते हुए आदमी के बदले मैं वह खींच देता है
एक वृत्त गूंगा-सा
पेट की जगह उभर आती है एक वर्गाकार आकृति
एक त्रिभुज में हल हो जाती हैं सारी समस्याएँ ।
बिना चेहरे वाला एक बच्चा
एक ढहते हुए क़िले की तस्वीर बनाकर वह कहता हैं
देखो राजा हार गया ।

वह नहीं बनाता है अपना चेहरा
मैं अपने चेहरे से डरता हूँ
हममें से कोई एक हँसता है दूसरा डर जाता है ।