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चेहरे (4) / हरीश बी० शर्मा


रतजगे मेरे
भाव घनेरे
कैसे प्रकटूं तेरे-मेरे
तीजे नाम पे
तलपट हो गई
इतने तेरे-उतने मेरे
टूटे सारे पहरे