चेहरों की चोरी करता है
आईना आसेबज़दा है
जाने क्या उस ने सोचा है
फिर पत्थर के पास खड़ा है
शहर हमारा कुछ मत पूछो
आवाज़ों का इक सहरा है
आवाज़ों के जंगल में भी
सन्नाटा ही सन्नाटा है
दोनों तरफ़ कुहसार खड़े हैं
बीच में इक दरिया बहता है
आहट है तेरे क़दमों की
या कोई पत्ता खड़का है