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चैती / बुद्धिनाथ मिश्र

साँसों के गजरे कुम्हलाए
आप न आए ।

यह अमराई कौन अगोरे
अब तो हुए हैं भार टिकोरे ।
अंग-अंग महुआ गदराए
आप न आए।

किसे दिखे यह मेघ उमड़ना
सूने आँगन नीम का झरना ।
याद अगिन पुरवा सुलगाए
आप न आए।

टेसूवन दहके अंगारे
झुलस-झुलस बाँसुरी पुकारे ।
बाँहों के गुदने अकुलाए
आप न आए।