दोसरा दिन होतै चौक चन्दा, भूली सें नै देखिहें चाँद।
लागतौं जों कलंक, नै छूटतौ, कत्तो उछले कूदें फाँद॥
मनीस्यअंतक-कथा सुनी केॅ दोस मिटै छै यहेॅ उपाय!
नै तेॅ दोस साल भर रहतौ, लगतौ रोज कलंक अघाय॥
ढेलोॅ फेकै छै ऐंगना में, कहिनें कोय पड़ोसीं भाय?
गारी सूनै लेॅ, ऊ दिन के गारी आसिस होइये जाय॥
लेकिन ई रेवाज, नै अच्छा, एकरा तुरत रोकलोॅ जाय।
महामूर्ख के ई रेवाज छै, रोकोॅ एकरा, करोॅ उपाय॥
चटसारी में चीक-चन्दा के उत्सव खूब मनैलोॅ जाय।
यै परबोॅ में गुरु सिनी के आमद के छै उचित उपाय॥
सब चटिया, चटिया कन जैतै पुल्ली-डन्टा लै केॅ आज।
वै चटिया के आँख मुनी केॅ देतै कस्सी केॅ आवाज॥
‘बबुआ रे बबुआ, लाल-लाल ढबुआ, आँख लाल भलौ रे बबुआ।
बापोॅ के अरजल-माय के कौसल, गुरु के आगू लुटाव रे बबुआ॥
यै गीतोॅ केॅ गाबी-गाबी पुल्ली खूब बजावै छै।
आरु गुरु केॅ धोती-कपड़ा-टाका खूब दिलाबै छै॥