Last modified on 17 अगस्त 2014, at 23:14

चौपाटी पर शाम / रमेश रंजक

देख प्यार का यह आवारापन
शरमदार सूरज
सागर में डूब गया
कसने लगे भुजाओं के बन्धन

मन डोला अय्याश अँधेरे का
भेद मिट गया मेरे-तेरे का
दमक उठे मुखड़े थकान वाले
बदन फूल हो गया सवेरे का
शरम उतरने लगी, क़सम चढ़ने
रीझ-खीझ कर मिलने लगे नयन

देख किसी चालाक बहाने को
अल्हड़ कन्धे के सिरहाने को
सन्त महन्तों की समाधि टूटी
भद्दी गाली मिली ज़माने को
बोल उठी यूँ अधबूढ़ी चूड़ी
कितना बदल गया है चाल-चलन

यह धरती अब नहीं नरेशों की
कौन करे चिन्ता उपदेशों की
ताक़त भी कमज़ोर हो गई है
आदर की चादर के रेशों की
नई वर्णमाला के बदल दिए
नए समय ने सारे स्वर-व्यंजन