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चौपाल की ढोलक / दिनेश कुमार शुक्ल

रसना बानी के रस बोल
बानी भेद अगम के खोल

कहना इस युग का भूगोल
कहना ये कैसा भुइडोल
जाती आसमान तक झोल
सूरज चलता राह टटोल

कोई कहे खतम इतिहास
उस पर मत करना बिसवास
रखना संघर्षो को याद
जिनसे बनता है इतिहास

सबको स्वार्थ-तराजू तोल
सबका लगा रहा जो मोल
कहता कुछ न रहा अनमोल
आओ खोलें उसकी पोल

सच की बानी बड़ी प्रचंड
करती चूर-चूर पाखंड
क्यूँकर बिधना लिखे लिलार
क्यूँकर धर्मधुजी मक्कार
क्यूँकर हज को चली बिलार
खाती सौ-सौ चूहे मार

क्यूँकर पूँजी में दुरगन्ध
क्यूँकर मिल में ताला बन्द
कातिल घूम रहे स्वच्छन्द
जन-गण-मन थाने में बन्द

क्यूँकर पापी है धनवान
क्यूँकर नेता बेईमान
क्यूँकर भूखा रहे किसान
हरदम रहें हलक में प्रान

जीवन अद्‌भुत कथा प्रसंग
इसमें इन्द्रधनुष के रंग
इसमें तीन-ताल मिरदंग
जीवन-जल की तरल तरंग

देखो ! चले पवन झकझोर
अब भी बहे नदी हलकोर
चाहे पीड़ा उठे मरोर
साधे रखना जीवन-डोर
बन में फिर नाचेंगे मोर
फूटेगी फिर सुन्दर भोर

देखो ये जीवन अनमोल
इसमें दे न कोई विष घोल
रसना बानी के रस बोल
बानी भेद अगम के खोल।