(किसान के हाथ में सौ-सौ के नोट, उसकी घरवाली के सिर पर फसल का गट्ठर)
सिर पर पकी फसल का गट्ठर
बिंदिया दीपित भाल
हाथ हरापन लिए, साथ-
हँस रहे बिहारी लाल।
धरती ने सोना उगला है
आसमान ने बरसे मोती
ये मुँह बोले चित्र कह रहे-
देखो हमें खुशी क्या होती?
खुशियों के आरोपण
चाहे जिसको करें निहाल।
इतनी भरी-पुरी जोड़ी पर
आती-जाती आँख टिक रही
आँचल की नीली छाया में
पीली पगड़ी हरी दिख रही
रंगों के भी क्या कहने
चूनर-से लगते जाल।
खुशहाली का राज खोलता
चौराहे का यह विज्ञापन
सड़कों पर कितना निखरा है
घर के भीतर का अपनापन,
‘देहली’ का देवत्व पूछता-
है कोई कंगाल?