छन्द है यह फूल, पत्ती प्रास।
सभी कुछ में है नियम की साँस।
कौन-सा वह अर्थ जिसकी अलंकृति कर नहीं सकती
यही पैरों तले की घास?
समर्पण लय, कर्म है संगीत
टेक करुणा-सजग मानव-प्रीति।
यति न खोजो-अहं ही यति है!-स्वयं रणरणित होते
रहो, मेरे मीत!
इलाहाबाद, 29 दिसम्बर ,1949