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छंद 21 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज

मौक्तिकदाम

कदंब प्रसूनन सौं सरसात। बिलोकि प्रभा पुलके जनु गात॥
मरंद झरैं चहुँधाँ सब फूल। बहाइकैं आँसु तजैं मनु सूल॥

भावार्थ: कदंब फूलों से सुशोभित हो रहे हैं; उनके पुष्पों पर ‘श्वेत अंकुर’ ऐसे भासित होते हैं मानो अकृत्रिम शोभा देखकर उनको रोमांच हुआ है। चारों तरफ पुष्प जो मकरंद गिरा रहे हैं, सो मानो महाराज ऋतुराज के बहुत काल तक दर्शन न प्राप्त होने के संताप को आँसू के द्वारा हृदय से निकाले देते हैं।