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छंद 247 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज

   सोरठा
(नख-शिख कथन की प्रस्तावना-वर्णन)

जानि हिए मैं चाइ, नख-सिख-रचना कौ रुचिर।
तुरत आइ समुझाइ, श्री मुख सौं बानी कह्यौ॥

भावार्थ: कवि कहता है कि उस (मुझ) को नख-शिख रचना के उत्साह में असमर्थ और ऐसा घबराया देखकर पूर्व परिचित परम दयालु ‘भारती’ ने उसके (मेरी) बुद्धिस्थित हो उपदेश किया।