दोहा
कबहुँक राधा के ललित, अंगन की दुति देखि।
करैं बचन-रचना बिबिधि, सुमुखि सुसखी बिसेखि॥
भावार्थ: कभी श्रीराधिका के रुचिर अंगों की शोभा देख, कोई सुंदरी सखी, दूसरी सखी से वाक् चातुरी द्वारा उसका वर्णन करती है।
दोहा
कबहुँक राधा के ललित, अंगन की दुति देखि।
करैं बचन-रचना बिबिधि, सुमुखि सुसखी बिसेखि॥
भावार्थ: कभी श्रीराधिका के रुचिर अंगों की शोभा देख, कोई सुंदरी सखी, दूसरी सखी से वाक् चातुरी द्वारा उसका वर्णन करती है।