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छंद 51 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज

सोरठा
(कवि उक्ति)

तब तजि संभ्रम-भास, मति कौ यह उपदेस सुनि।
चाँह्यौ करन प्रकास, रचि राधा-माधव-सुजस॥

भावार्थ: इस प्रकार बुद्धिस्थित भगवती का उपदेश सुनकर मेरे चित्त का मिथ्याभास जाता रहा और मुझे राधा-राधारमण के सुयश के प्रकाश करने की इच्छा हुई।