दोहा
(कवि प्रसन्नता-वर्णन)
अति प्रसन्न गदगद गिरा, मुख सौं कढ़त न बात।
बार-बार बिनती करी, जोरि सुकर-जलजात॥
भावार्थ: और तब मैं हर्षित होकर गद्गद व अधूरे अक्षरों से इस प्रकार भगवती की विनती हाथ जोड़कर करने लगा।
दोहा
(कवि प्रसन्नता-वर्णन)
अति प्रसन्न गदगद गिरा, मुख सौं कढ़त न बात।
बार-बार बिनती करी, जोरि सुकर-जलजात॥
भावार्थ: और तब मैं हर्षित होकर गद्गद व अधूरे अक्षरों से इस प्रकार भगवती की विनती हाथ जोड़कर करने लगा।