दोहा
(कविकृत सज्जन प्रशंसा-वर्णन)
लखि-लखि कुमति कुदूषनहिँ, दैहैं सुमति बनाइ।
रहै भलाई भलेन मैं, केबल अंग-सुभाइ॥
भावार्थ: और यह भी समझो कि दूषण को देख ‘पंडित लोग’ लेखक की कुमति की निंदा न कर लेख का भ्रम मान सुधार देते हैं यह उनका सदैव अंग-स्वभाव है।