हमर बोली छतीसगढ़ी
जइसे सोन्ना-चांदी के मिंझरा-सुघ्घर लरी।
गोठ कतेक गुरतुर हे
ये ला जानथे परदेशी।
ये बोली कस बोली नइये
मान गेहें विदेशी॥
गोठियाय मा त लागधेच
सुने मा घला सुहाथे –देवरिया फुलझड़ी
मया पलपला जथे,
सुन के ये दे बोली ।
अघा जथे जीहा
भर जथे दिल के झोली ॥
मन हरिया जथे गज़ब
धान बरोबर, पाके सावन के झड़ी।
अउ बोली मन डारा खांघा
छत्तीसगढ़ रुख के फुनगी
सवादमार ले गोठिया ले
चार दिन के जिनगी।
कोचड़ पान पीठी के बफौरी कस
अउ जइसे रसहा रखिया बरी