किराये के मकान से भी आँखें देख लेती है आकाश
देखते हुए आकाश आँखें बन जाती है आकाश
कई तरह की छतों के साए में एक के बाद
एक कई तरह की छतों में अपने को बदलती
अपने लिए एक अलग छत की तलाश में
जुटी रही तमाम उम्र
एक ऐसा दरवाज़ा होता जहाँ सिर्फ़ अपनी दस्तक होती
आज कितना मुश्किल होता जा रहा है
इतने बड़े भूमंडल पर
बचाए रखना एक कोना
जहाँ सर पर अपनी छत हो और
उस छत से उड़ान के लिए एक आसमान
याद आती है बचपन की वह छत
जहाँ ढेर सारे सपने देखे
मीलों लम्बी चहलकदमी की
चाँद से की जी भर दोस्ती
आँगन की कैद से ली मुक्ति
बगल की छत से की दोस्ती
जुलूस में हुए शामिल
आज अदृश्य होते जा रहे है वे माथे
जिस पर कई बार त्योंरियाँ पड़ जाया करती थी
क्या कभी संभव है
स्मृतियों की बस्ती में मिल पाना
बचपन का वह खोया रास्ता
जिसपर चलते हुए
सर पर महसूस करती थी एक छत