पत्रकार मित्र अनिता कर्ण के लिए
इस बार
दिल्ली की भीषण गर्मी और उमस में
दुखों के बोझ से
उमड़ता-घुमड़ता रहा मैं
किसी सघन छाया की तलाश में
एक बून्द मीठा ठण्डा जल और
दो मीठे बोल
सहानुभूति के चन्द शब्द
और अपनत्व के हल्के स्पर्श के लिए
तड़पता रहा मेरा मन
तपता रहा मेरा मन
भागते हुए दहाड़ती सड़कों को
पर करते वक़्त
या नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के होस्टलों में
संगीत नाटक अकादमी की
चिकनी सीढ़ियों पर
या श्रीराम सेण्टर की कैण्टीन में
लगातार ढूँढ़ती रहीं मेरी आँखें
किसी परिचित चेहरे को
दिल्ली के जंगलों में खोए
किसी अपने को
अचानक तुम मिलीं
साहिबावाद की ओर जाती
लोकल ट्रन में
भीषण मारक लू को चीरती
ठण्डी बयार की तरह
मिलीं तुम
तुम मिलीं
एक बोतल ठण्डे मिनरल वाटर की तरह
मेरे दुःख और
मेरी परेशानियों को
थोड़ा बाँट लेने के लिए
मिलीं तुम
सम्वेदनाओं के हल्के झोंकों की तरह
मेरा उमड़ता-घुमड़ता मन
सह न सका
तुम्हारी सम्वेदनाओं के स्पर्श
छलक गईं मेरी आँखें
और मानसून के पहले बादल की तरह
बरस गया मैं
हो गया हल्का
आकाश की तरह
इस भीषण और मारक
दिल्ली की गर्मी में