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छलक न जाना / रंजन कुमार झा


सुनो हृदय के पीर दृगों से
गालों पर तुम छलक न जाना

समझ रहे तुम आँसू जिनको
वो सबके सब गंगाजल हैँ
हृद-मंदिर के देवों के सिर
चढ़ने वाले नीर धवल हैं
इसे भाव की स्याही में भर
नव गीतों के बोल सजाना

पत्थर दिल दुनिया वाले सब
मोल भला क्या इनका जाने
एक बूँद जो गिरी धरा पर
रो जाएँगे सब दीवाने
तुम्हें कसम है दीवानों की
इन बूँदों की लाज बचाना

गालों पर गिर जाएँ ये तो
लोग न जाने क्या बोलेंगे
होगी दुनिया में बदनामी
राज सभी जब वे खोलेंगे
ये हैं मोती की वो लड़ियाँ
जिन्हें हार को जीत बनाना