उजड़ते हुए
मेरे वीरान जीवन की
छाया बन गई कविताएँ।
कौन जाने आत्मा में
कैसे अँखुवाती हैं कविताएँ
पृथ्वी की कोख से
कैसे जन्मते हैं वृक्ष ?
मूल मराठी से अनुवाद — शशिकला राय
उजड़ते हुए
मेरे वीरान जीवन की
छाया बन गई कविताएँ।
कौन जाने आत्मा में
कैसे अँखुवाती हैं कविताएँ
पृथ्वी की कोख से
कैसे जन्मते हैं वृक्ष ?
मूल मराठी से अनुवाद — शशिकला राय