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छाया पेड़ों की ! / रमेश तैलंग

कड़ी धूप में अच्छी लगती
छाया पेड़ों की ।
थके बदन की पीड़ा हरती
छाया पेड़ों की ।

कभी किसी में भेद न करती
छाया पेड़ों की ।
हर पंथी की सेवा करती
छाया पेड़ों की ।

घट कर बढ़ती, बढ़ कर घटती
छाया पेड़ों की ।
अच्छा बोलो, कैसे बनती
छाया पेड़ों की ।