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छिटगा-2 / शान्ति प्रकाश 'जिज्ञासु'

1.
अपड़ा मन कु भेद कैमा नि खोलण
बिना मतलबै बात कैमा नि बोलण
दाना बोल्यूं अर औळों कु स्वाद
काम बिगड़ जांद तब आंद याद ।


2.
अपड़ा अपड़ां से दूर हूंणा छन
बिरणा गौळा भिंटेकी रोणा छन
खुद बिसराणौ बक्त नी मिलणू
आंसू पेट का पेट बुसेणा छन।

3.
नांगा खुट्टोंन नपनी बाठा
चिरोड़ा लगनी जौं गत्यूं पर
खौरी दुखरि उमर भर खै
जस नि रै तां हत्थ्यूं पर ।

4.
जिन्दगी च दिया की बाती
बसन्त ऋतु की फूल पाती
वक्त चा त भेंट जांदी
भोळ परबात रांदी नि रांदी।

5.
मै तैं पता च यु ह्वै नि सकदू
फिर भी भोळै आस नि छोड़दू
लोग छोड़ देंदन जरा मा हाथ खुट्टा
मि मुसीबत मा भी हार नि मन्दू ।


6.
ऋषि मुन्यूं की भूमि च या
देव लोक कु माटू च
गुजर बसर हो कनमा इख
जब तिरीस रुप्या किलु आटू च।