Last modified on 28 फ़रवरी 2012, at 07:16

छिपे हैं मन में जो .. / ओमप्रकाश यती



छिपे हैं मन में जो भगवान से वो पाप डरते हैं
डराता वो नहीं है लोग अपने आप डरते हैं

यहाँ अब आधुनिक संगीत का ये हाल है यारो
बहुत उस्ताद भी भरते हुए आलाप डरते हैं

कहीं बैठा हुआ हो भय हमारे मन के अन्दर तो
सुनाई मित्र की भी दे अगर पदचाप ,डरते हैं

निकल जाती है अक्सर चीख जब डरते हैं सपनों में
हक़ीक़त में तो ये होता है हम चुपचाप डरते हैं

नतीजा देखिये उम्मीद के बढते दबावों का
उधर सन्तान डरती है इधर माँ-बाप डरते हैं