छुआ चांदनी ने जभी गात क्वांरा,
नहाने लगी रूप में यामिनी.
कहीं जो अधर पर खिली रातरानी,
मचलने लगी अभ्र में दामिनी..
चितवनों से निहारा ,सखी,वंक जो,
उषा सांझ पलकों की अनुगामिनी.
तुम गईं द्वार से घूंघटा खींचकर,
यों तपस्वी जपे कामिनी कामिनी ..
छुआ चांदनी ने जभी गात क्वांरा,
नहाने लगी रूप में यामिनी.
कहीं जो अधर पर खिली रातरानी,
मचलने लगी अभ्र में दामिनी..
चितवनों से निहारा ,सखी,वंक जो,
उषा सांझ पलकों की अनुगामिनी.
तुम गईं द्वार से घूंघटा खींचकर,
यों तपस्वी जपे कामिनी कामिनी ..