आठ साल की छुटकी
अपने से दस साल बड़े
अपने भाई के साथ
बराबरी से झगड़ रही है
छीना-झपटी
खींचा-खांची
नोचा-नाचीं
यहाँ तक की मारा-पीटी भी
उसकी माँ नाराज है
इस नकचढ़ी छुटकी से
बराबरी से जो लडती है
अपने भाई के साथ
वह मुझसे भी नाराज़ है
सर चढ़ा रखा है मैंने उसे
मैं ही बना रहा हूँ उसे लड़ाकू
शायद समझती नहीं
कि ज़िन्दगी के घने बीहड़ से होकर
गुज़रना है उसे
इस वक़्त
खेल-खेल में जो सीख लेगी
थोड़ा-बहुत लड़ना-भिड़ना
ज़िन्दगी भर उसके काम आएगा ।