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छुट्टल डोल रहे / रमेश रंजक

छुट्टल डोल रहे मुफ़्तल्लू !
बातों-बातों में इस-उसकी
जेबें टटोल रहे मुफ़्तल्लू !

इनके पास कई चेहरे हैं
कुछ उनको, कुछ वो घेरे हैं
कितना कौन काम का बन्दा है
गुप-चुप तोल रहे मुफ़्तल्लू !

घर में चौकस बाहर चंगे
जिनके नाम अनलिखे दंगे
हर चौराहे पर समता की
बानी बोल रहे मुफ़्तल्लू !

पाँव लगे थाने-थाने तक
लम्बे हाथ जेलख़ाने तक
नेताजी के हए चुनाव में
बढ़िया ढोल रहे मुफ़्तल्लू !